Shree Ram Chalisa pdf

 

Shree Ram Chalisa pdf

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श्री राम चालीसा ह
श्री रघुवीर भक्त तकारी। सुन लीजैप्रभुअरज हमारी॥
हनन ध्यान धरैजो कोई। ता सम भक्त और नहंहोई॥1॥
ध्यान धरेवजी मन माही हं। ब्रह्म इन्द्र पार नहं पाही हं॥
हू त तुम्हार वीर हनुमाना। जासुप्रभाव हतंपुर जाना॥2॥
तब भुज हण्ड प्रचण्ड कृ पाला। रावण मारर सुरन प्रहतपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गुहंसाई। हीनन के हो सहा सहाई॥3॥
ब्रह्माक तव पारन पावैं। सहा ईह तुम्हरो यह गावैं॥
चाररउ वेह भरत हैंसाखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी हं॥4॥
गुण गावत हारह मन माही हं। सुरपहत ताको पार न पाही हं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहंहोई॥5॥
राम नाम हैअपरम्पारा। चाररहु वेहन जा पुकारा॥
गणपहत नाम तुम्हारो लीन्हो। हतनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥6॥
हेष रटत हनत नाम तुम्हारा। म को भार हीह पर धारा॥
फू ल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥7॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासोहंकबहुहं न रण मेंहारो॥
नाम हक्षुहन हृहय प्रकाहा। सुहमरत होत हत्रुकर नाहा॥8॥
लखन तुम्हारेआज्ञाकारी। सहा करत सन्तन रखवारी॥
तातेरण जीतेनहं कोई। युह् घ जुरेयमं हकन होई॥9॥
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब हवहध करत पाप को छारा॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव खायो॥10॥
घट सोहंप्रकट भई सो आई। जाको हेखत चन्द्र लजाई॥
सो तुमरेहनत पाहंव पलोटत। नवो हनह् हघ चरणन मेंलोटत॥11॥
हसह् हघ अठारह महंगलकारी। सो तुम पर जावैबहलहारी॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापहत तुमहंबनाई॥12॥
इच्छा तेकोहटन सहंसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
जो तुम्हेचरणन हचत लावै। ताकी मुक्तक्त अवहस हो जावै॥13॥
जय जय जय प्रभुज्योहत स्वरूपा। नगुुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तयाुमी॥14॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो हनश्चय चारोहंफल पावै॥
सत्य हपथ गौरीपहत कीन्ही हं। तुमनेभक्तक्तहंसब हवहध हीन्ही हं॥15॥
सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहं भरत कु ल पूज्य प्रचारे॥
तुमहंहेव कु ल हेव हमारे । तुम गुरु हेव प्राण के प्यारे॥16॥
जो कु छ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभुराखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे । जय जय रथ राज हुलारे॥17॥
ज्ञान हृहय हो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपहत भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत सहंतापा॥18॥
सत्य हुह् घ हेवन मुख गाया। बजी हुन्हुभी ंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरेतन मन धन॥19॥
याको पाठ करेजो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥
आवागमन हमटैहत के रा। सत्य वचन मानेर मेरा॥20॥
और आस मन मेंजो होई। मनवाहंहछत फल पावेसोई॥
तीनहुहंकाल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी हल अरु फू ल चढावै॥21॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल हसह् घता पावै॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहाहंजन्म हरर भक्त कहाई॥22॥
श्री हररहास कहैअरु गावै। सो बैकु ण्ठ धाम को पावै॥23॥
सात दहवस जो नेम कर, पाठ करेदहत लाय।
हररहास हरर कृ पा से, अवदस भक्तह को पाय॥
राम हालीसा जो पढे, राम हरण दहत लाय।
जो इच्छा मन मेंकरै, सकल दसह्घ हो जाय॥

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